(पोस्ट को रुचिता तिवारी की आवाज़ में सुनने के लिए प्लेयर पर क्लिक करें)
मेलोडेलिशियस-12
ये ऑल इंडिया रेडियो नहीं है. ये ज़ेहन की आवाज़ है. काउंट डाउन नहीं है ये कोई. हारमोनियम की ‘कीज़’ की तरह कुछ गाने काले-सफेद से मेरे अंदर बैठ गए हैं. यूं लगता है कि साँसों की आवाजाही पर ये तरंगित हो उठते हैं. कभी काली पट्टी दब जाती है कभी सफेद. इन गानों को याद करना नहीं पड़ता बस उन पट्टियों को छेड़ना भर पड़ता है.
है दुनिया उसी की, ज़माना उसी का
मोहब्बत मे जो हो गया हो किसी का
सुबह-सुबह ओपी नय्यर का एक तराना मेरा पूरा दिन खूबसूरत बना देता है. स्वर्णिम काल के वो शानदार संगीतकार और उनका मंत्रमुग्ध कर देने वाला संगीत. इससे ज्यादा क्या चाहिए किसी को? आह! परम आनंद दायक! यद्यपि ओपी नय्यर किसी का भी पाँव थिरका देने वाले अपने जोशीले संगीत के लिए जाने जाते हैं, लेकिन मैं उनके इसी तरह के दर्द भरे, रंजीदा गाने भी पसंद करती हूँ, जो बिला शक़ ये साबित करते हैं कि ज़रूरत पड़ने पर वो गंभीर किस्म के नग्मे कितनी कुशलता से बना सकते हैं.
ओपी की विलक्षण शैली से बहुत अलग इस गाने के बोल एस एच बिहारी ने लिखे हैं जिनके साथ साठ के दशक में ओपी नय्यर का साथ हमें बहुत से खूबसूरत नगमे दे गया. नई ताजगी से साथ हिन्दी फिल्म म्यूजिक की दुनिया में प्रवेश करने वाले, आकर्षक और जिंदादिल ओंकार प्रसाद या ओपी नय्यर, एक दशक से ज्यादा हिन्दी फिल्म संगीत के बादशाह बने रहे. ओपी के पाँव थिरका देने वाले ट्रेडमार्क म्यूज़िक ने एक बिलकुल नई परिपाटी डाली जो अपनी मौलिक धुन संरचना की वजह से संगीत जगत पर हावी हो गयी. हिन्दी फिल्म म्यूज़िक के उन स्वर्णिम वर्षों में परम्परागत संगीत और पाश्चात्य संगीत के संगम से अलग ही तरह का अद्भुद प्रभाव पैदा करने वालों में ओपी अग्रणी संगीतकार थे.
ओपी उस दौर के संगीत के आकाश के सबसे चमकीले सितारे थे, सिर्फ नए प्रयोग कर लेने की क्षमता की वजह से नहीं बल्कि इस वजह से भी कि वो पहले संगीतकार थे जिन्होंने आशा भोंसले की आवाज़ में अब तक छुपी हुई सेन्सुएलिटी को पकड़ा, वही पहले संगीतकार थे जिन्होंने रफ़ी की आवाज़ की कुदरती विलक्षणता का पूरा, 360 डिग्री इस्तेमाल किया.
उनके गानों का गहरा रोमांटिक होना उनके व्यक्तित्व से ही उपजा लगता है. पैर थपथपाने पर मजबूर करने वाली धुनें, वाद्ययंत्रों का चतुराई से किया गया इस्तेमाल, थोड़ा सा पंजाबीपन, ये सब मिलकर उनके गानों में एक ताज़गी और जोश भर देते थे जो, अब तक चल रहे परम्परागत हिन्दी फ़िल्मी संगीत का चेहरा बदलने के लिए पर्याप्त था. उनके बनाए गंभीर, भावनात्मक एकल गीतों में भी एक तरह की गतिशीलता है, वेग है. डूएट्स के तो वो मास्टर थे ही. युगल गीतों के लिए अब तक के सबसे महान संगीतकारों में ओपी का नाम लिया जाता है. इसकी तीन ख़ास वजहें समझ में आती हैं. पहला, बीट्स, बोल, थीम और वातावरण के हिसाब से म्यूज़िक इंस्ट्रूमेंट का चुनाव, दूसरा, यूनीक रिदम या ताल और तीसरा, सबसे महत्वपूर्ण, कोई एक स्पेशल फीचर जैसे पुरुष या महिला गायक में से किसी एक का गाने में देर से प्रवेश करना, जिससे गाना शुरुआती तौर पर सोलो लगे और सुनने वाले को आश्चर्य में डालते हुए एकदम से डुएट में तब्दील हो जाए.
एक तरह से फ्यूज़न म्यूज़िक बनाने वालों के पुरखे हैं ओपी. यही नहीं, ओपी पंजाब का होने की वजह से पंजाबी संगीत के इतने दीवाने थे कि ऐसे गाने जो आराम से वेस्टर्न इंस्ट्रुमेंटल पैटर्न पर चल जाते उनमें ढोलक और तबला ले आते हैं. ये भी एक नए तरह का प्रयोग कहा जाएगा. जैसे कि एक खुशदिल सी धुन-
जाइए आप कहाँ जाएंगे
ये नज़र लौटके फिर आएगी
या फिर हावड़ा ब्रिज की ये नशीली धुन-
आइये मेहरबां बैठिये जानेजाँ
शौक़ से लीजियेजी इश्क़ के इम्तेहाँ
इसमें जैज़ बैंड का इस्तेमाल है. लेकिन बहुत मजे से बौंगो की जगह अंतरे में तबला ले लेता है. एक ढर्रे पर चलने वालों को ये सुसंगत नहीं लगेगा लेकिन ओपी के लिए यही प्रयोग उन्हें बहुत कुछ दे गए और इन्ही की वजह से वो आज भी समकालीन कहे जा सकते हैं न की उनके अन्य समकालीनों की तरह रेट्रो.
नया दौर’ जैसी फिल्मों में नय्यर के गानों में थाप बहुत ‘मजबूती से उभरता है जो ज्यादातर पंजाबी लोक धुनों की बीट्स का प्रभाव है-
रेशमी सलवार कुर्ता जाली का
रूप सहा नहीं जाए नखरेवाली का
ओपी थाप वाले देसी-विदेशी बहुत से वाद्ययंत्र इस्तेमाल करते थे, यहाँ तक कि उन्होंने स्पेन, इटली या पुर्तगाल के संगीत में इस्तेमाल होने वाले कैस्टानेट की भी आवाज़ ली है.
अगर कोई सारंगी और तार-शहनाई हंस सकती थी तो वो नय्यर की ही होगी. कहने का तात्पर्य ये है कि शहनाई और सारंगी को उनके परम्परागत धीमे सुरों से आज़ाद कर उनसे अलहदा काम लिया ओपी ने.
हवाइन गिटार तो उनका पसंदीदा वाद्ययंत्र था. अधिकतर इसका प्रयोग वो तरंग या पानी की लहरों की आवाज़ का प्रभाव पैदा करने के लिए करते थे.
बांसुरी और शहनाई की मधुर धुनों को ओपी ने चतुराई से गानों में पिरोया है. उनके पास अब्दुल, राम सिंह और गंगा राम जैसे शहनाई वादक थे जिन्होंने इसे बखूबी अंजाम दिया.
ओपी के संगीत में रईस खान का सितार, राम नारायण की सारंगी, पंडित शिव कुमार शर्मा का संतूर और हरी प्रसाद चौरसिया की बांसुरी न होती तो चार चाँद कैसे लगते.
उनके मुख्य सहायक सेबास्चियन ऑर्केस्ट्रा को व्यवस्थित करते थे. तबलची जी एस कोहली ताल बनाने में मदद करते थे, लेकिन पूरी संगीत बद्धता या ऑर्केस्ट्रेशन का आख़िरी निर्णय हमेशा ओपी नय्यर खुद लिया करते थे. अक्सर सोलो पीस वो खुद कम्पोज़ किया करते थे. इसीलिये ज़ाहिर तौर पर उन सोलो पीसेज़ पर ओपी की स्पष्ट छाप है, क्योंकि वो कम्पोजीशन का काम बाहर से आयातित या आउटसोर्स नहीं करते.
अपनी शर्तों पर काम करने की भी उनकी अनेक कहानियाँ हैं. फिल्म `कश्मीर की कली’ का उदाहरण सामने है. शक्ति सामंत उनके पास एक फिल्म का आइडिया लेकर आए और उनसे अलग-अलग मूड के 8 गाने बनाने के लिए कहा, जिसके इर्द-गिर्द वो पूरी फिल्म की कहानी लिखना चाहते थे. ओपी की शर्त यही थी कि गाने के फिल्मांकन में वो स्वयं रहेंगे. यही हुआ भी. अंजाम हमारे सामने है. एक ऐसी म्यूजिकल ब्लॉक बस्टर, जिसके सारे गाने सुपर हिट रहे. आशा भोंसले की अभूतपूर्व रेंज और रफ़ी की अलौकिक प्रतिभा से गुंथा नय्यर का संगीत ही वह धुरी है जिसपर पूरी फिल्म, उसकी स्वीकार्यता, उसकी सफलता टिकी हुई है.
कश्मीर की सुरम्य वादियों में फिल्माई गयी इस फिल्म में शम्मी के साथ फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत कर रही कली जैसी ही खूबसूरत शर्मीला टैगोर थीं. लेकिन आइसिंग ऑन द केक तो ओपी का म्यूजिक ही है. कभी न थकने वाले शम्मी, उनका जोश से भरा हुआ खिलंदड़पन, शर्मीला की मासूमियत, उनके गालों के गड्ढे और इन सबके बीच सुरीला साम्य बैठाता, लोकधुनों की मिठास लिए, आशा के निर्दोष सुर और रफ़ी की नशीली आवाज़ के साथ, क्लासिकल वाद्ययंत्रों पर सजा ओपी नय्यर का संगीत. आह! प. शिव कुमार शर्मा संतूर पर, उस्ताद रईस खान सितार पर और प. राम नारायण सारंगी पर हों तो किस किस्म का जादू होता है उसकी बानगी है इस फिल्म का जादुई संगीत.
इसमें कोई शक नहीं, कि रफ़ी को प्रोत्साहित करने में सबसे बड़ा हाथ नौशाद का है, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि रफ़ी 1954-55 में आरपार की सफलता के बाद जितने बहुमुखी गायक के रूप में पहचाने गए उतना उससे पहले नहीं. उनके कैरियर ग्राफ पर अगर नज़र डालें, तो नौशाद के साथ भी वो एक ही तरह के क्लासिकल गानों के लिए रूढ़ीबद्ध हो गए थे. ये ओपी ही थे जिन्होंने उनके गायन के हर पक्ष को उभारकर सामने लाने में मदद की, उन्हें हलके-फुल्के, खुशनुमा, रूमानी, जीवंत गाने देकर. अगर नौशाद का साथ रफ़ी का पैर जमाने के लिए आधार बना, तो ओपी का आना उनके जीवन का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट. पचास के दशक की ओपी-रफ़ी जोड़ी ने जो संगीत पैदा किया, उसने रफ़ी को आने वाले कई सालों तक इंडस्ट्री का सबसे बड़ा, व्यस्त और चहेता गायक बनाए रक्खा.
आज का गाना उस एल्बम से है, जिससे अगर पसंदीदा गाना चुनने को कहा जाए तो मैं पूरे एल्बम को ही चुन लूंगी. ये फिल्म गानों पर पाँव थिरकाने से बने निशान की तरह है और गाने धरती के स्वर्ग कश्मीर के सौन्दर्य पर लिखे कसीदों की तरह. सभी आठ गाने एस एच बिहारी की शानदार शायरी, ओपी नय्यर के अलौकिक संगीत और सूर्य कुमार के जानदार नृत्य निर्देशन की वजह से त्रिगुणात्मक सौन्दर्य से भरे हुए हैं.
तीन डुएट हैं फिल्म में. तीनों डूएट्स को देखते हुए आप मंत्रमुग्ध रह जाते हैं, कि कितनी नाज़ुक अदा से शम्मी, शर्मीला के साथ प्रेम प्रदर्शित कर रहे हैं जबकि शम्मी अपनी उछल-कूद और पूरे शरीर को हिला देने वाली डांसिंग के लिए जाने जाते हैं. उनकी इस उमंग को सूर्य कुमार ने सोलो गानों में खुली छूट दी है. रफी की क्लासिक आवाज़ में डल झील में, शिकारे पर शम्मी कपूर `ये चाँद सा रोशन चेहरा’ गाते अपने क्लासिक अंदाज़ में डांस करते, तारीफ़ करते-करते उन्मादित होकर ताली बजाते-बजाते अंततः झील में कूद ही जाते हैं और गाने को हमेशा के लिए अमर नौका-नृत्य, बोट बैले बना देते हैं. उन दिनों ओपी हजारा सिंह को गिटारिस्ट के रूप में लिया करते थे. इस गाने और फ़िल्म के गिटार बेस्ड अन्य गानों में भी उनके गिटार का जादू भरा पड़ा है.
किसी न किसी से कभी न कभी’ गाने की ख़ास बात उसकी रेंज है. गाने का मुखड़ा नीचे के सुर पर है और अचानक अंतरे में ऊंचे नोट्स पर चला जाता है.
`दीवाना हुआ बादल सावन की घटा छाई
ये देख के दिल झूमा ली प्यार ने अंगड़ाई’
जिसके सघन संगीत में सितार, सारंगी, बांसुरी और मेंडोलिन सब हैं और ये सब तांगे की चाल के साथ ताल बनाते हुए एक अजब समां बाँध देते हैं, बहुत ही कर्णप्रिय गाना है. गाना राग मालगुन्जी पर आधारित है. इस गाने का शुरुआती टुकड़ा, समापन का टुकड़ा, इंटरल्यूड पार्ट, कोमल लय और रफ़ी-आशा की संवेदनात्मक गायकी, सब मिलकर इसे एक मधुर, सम्पूर्ण और लगभग दोषरहित डुएट बना देते हैं. आशा, ओपी की सिग्नेचर स्टाइल में, गाने के दूसरे अंतरे में सुनाई देती हैं. पिछले दिनों फेसबुक पर हुए एक सर्वे जिसमें पचास से सत्तर के दशक के बीच सबसे बेहतरीन युगल गीत का चुनाव किया जाना था, उसमें इसे ही विजेता घोषित किया गया.
`इशारों-इशारों में दिल लेने
वाले बता ये हुनर तुमने सीखा कहाँ से’
गाना राग पहाड़ी पर आधारित है. इस गाने में बोल, शब्दों का थ्रो, उनका उच्चारण, उस्ताद रईस खान के बजाय सितार के इंटरल्यूड के अलावा एक और बहुत महत्वपूर्ण चीज़ है, वो है इस गाने का ट्रिपल मीटर.
इस फिल्म के एक गाने `बलमा खुली हवा में’ पर फिल्म रिलीज़ होने के एक हफ्ते बाद कैंची चल गयी. पहले पूरा गाना सेंसर से पास हो गया था. फिर अचानक एक हफ्ते के बाद ये कहते हुए कि शर्मीला का दुपट्टा उड़ते हुए उनके सिर तक पहुँचने वाले सीन में अश्लीलता है, सेंसर बोर्ड ने इसे फ़िल्म से हटवा दिया.
सेंसर तो इस गाने के हटने का कारण बना, ऐसे और भी गाने रहे जो पूरा बनने के बाद भी फ़िल्म में इस्तेमाल नहीं किये जा सके. ओपी नय्यर एक ही फ़िल्म के लिए कई गाने बना देते थे, सब एक से बढ़कर एक. और अक्सर ऐसा हो जाता था कि फ़िल्म की लंबाई, कहानी या किसी अन्य कारण से कुछ बहुत अच्छे गानें फ़िल्म में लिए जाने से रह जाते थे. ऐसा ही ओपी-आशा डुओ का एक अविस्मरणीय गाना है-
`चैन से हमको कभी आपने जीने न दिया
ज़हर भी चाहा कभी पीना, तो पीने न दिया’
ये गाना फिल्म `प्राण जाए पर वचन न जाए’ के लिए आशा भोंसले की आवाज़ में रिकॉर्ड हुआ था, लेकिन फिल्म में इस्तेमाल नहीं किया जा सका, ओपी और आशा के बीच बढ़ती खाइयों की वजह से. फिल्म `नया दौर’ की सफलता के बाद से ही ओपी नय्यर आशा को संवारने में लगे रहे. आशा भोंसले, लता की प्रतिस्पर्द्धा में अपना कैरियर मजबूती से बना सकीं, उसके पीछे ओपी नय्यर का बहुत बड़ा योगदान है. अंतर्मन को छू लेने वाला, ये उदास गाना एक गहरी पीड़ा से भरा हुआ है. गाने की धुन बहुत सरल लगती है, दिल छू लेने वाली, दुःख से भर देने वाली. ताल पिआनो के सुर और चर्च की घंटियों की आवाज़ के साथ मिली हुई है. बहुत कम ओर्केस्ट्रा और बीच-बीच में बांसुरी की तान. दो सुरों के बीच में बेज़ुबानी को रेंखाकित सा करती हुई ख़ामोशी. ये खामोशी ओपी और आशा के बीच बंद होते वार्तालाप, बढ़ती दूरियों और टूटते सम्बन्ध की खामोशी भी है.
खैर!
कश्मीर की कली फिल्म के अन्य गानों के बराबर `है दुनिया उसी की ज़माना उसी का’ इस गाने को उतनी तवज्जो नहीं मिलती. एस एच बिहारी के बोल, ओपी का अंतरतम छेड़ देने वाला म्यूजिक, महान वादक मनोहरी सिंह के अद्भुद सैक्सोफोन पीसेज़ और रफ़ी की नशीली आवाज़. गाने का माहौल देखिये. बंद होता हुआ बार, आख़िरी जाम, अनमयस्क सा साक़ी, चुनिन्दा बचे खुचे हमप्याला साथी और ये नशीला गाना! गाने की अन्दर-बाहर की पूरी सेटिंग इतनी कमाल है कि इसे सुनते ऐसा लगता है, रफ़ी अभिनय करने लगे हैं और शम्मी लगे हैं गाना गाने!
है दुनिया उसी की, ज़माना उसी का
मोहब्बत मे जो हो गया हो किसी का
गाने की शुरुआत कैपेला मुखड़े से है, इसमें बिना म्यूज़िक के गाना गाया जाता है. मुखड़ा बिना किसी वाद्ययंत्र के बजे गाते हैं रफ़ी. अगर आप सिर्फ सुन रहे हों, इसे देख न रहे हों तो बस इतना ही अनुमान लगा सकते हैं आप कि गाना उदासी का है. जैसे ही `मोहब्बत में जो हो गया हो किसी का’ पर आते हैं रफ़ी, एकदम से पता चल जाता है कि स्क्रीन पर इसे गाने वाला शख्स नशे में है. जैसे-जैसे आगे बढ़ता है गाना, इसके बोल, म्यूजिक और आवाज़ मिलकर एक दिल छू लेने वाले फलसफे में डुबा देते हैं आपको, जिसका नशा एल्कोहल से तो ज्यादा ही होता है.
गाने में सैक्सोफोन के पीसेज़ के साथ इंटरल्यूड और पोस्टल्यूड्स हैं. ऐसा लगता है कि संगीतकार ने ये कसम खा रक्खी हो कि वो सुनने वाले की खुमारी उतरने नहीं देगा, और उसकी कमाल की सेंसिबिलिटी देखिये कि वो रफ़ी की आवाज़ और सैक्सोफोन को एक साथ नहीं बजाता. जिससे सुनने वाले को एक ही तरीके का नशा हो. अंतरे के बीच-बीच में बहुत ही मादक सैक्सोफोन बजता है. कभी कविता में डूबी हुई रफ़ी की नशीली आवाज़ तो कभी सैक्सोफोन. नशा उतरने नहीं पाता.
बर्बाद होना जिसकी अदा हो
दर्द-ए-मोहब्बत जिसकी दवा हो
सताएगा क्या गम उसे ज़िंदगी का
मोहब्बत मे जो हो गया हो किसी का
इस गाने को इश्क़, नशे और शम्मी के आइकोनिक अंदाज़ को निभा सकने वाली जुम्बिश के साथ रफ़ी के अलावा कौन गा सकता था. गाने का सबसे ऊंचा नोट बहुत शार्प `जी 4’ और निचला `डी3’ है.
डी3 से जी4! इतनी बड़ी रेंज रफ़ी की काबिलियत साबित करने के लिए काफी है.
ओपी नय्यर की सामान्य स्टाइल से अलग लगते इस गाने में भी ओपी उतनी ही स्वभावगत विलक्षणता के साथ मौजूद हैं जितना की किसी और गाने में. उन्होंने दर्द को कितना सजीला, कितना अभिलाषित, कितना रोमांटिसाइज़ कर दिया है कि ये गाना आपको अजीब से सूफ़ी फलसफे में ले जाता है. अच्छे संगीत से मिलने वाले आनंद से, सुकून से, सकारात्मकता से रूबरू कराता है. और यही गाना क्यों ओपी के बनाए अधिकतर गाने ऐसी ही सकारात्मकता से भरे हुए हैं. सच ही कहते थे ओपी नय्यर-
इक रोज़ मैं हर आँख से छुप जाउंगा लेकिन
धड़कन में समाया हुआ हर दिल में रहूँगा
दुनिया मेरे गीतों से मुझे याद करेगी
उठ जाउंगा फिर भी इस महफ़िल में रहूँगा
तो अगर प्रेम की पुलक में हों आप, पहले प्यार की याद में हों, किसी असफल प्रेम के दर्द में हों, या अभी इंतज़ार में हों इस अजीब सी शय को महसूसने के, तो इस गाने को सुनिए. लुट जाने का लुत्फ़ उठाइये, बर्बाद हो जाने की अदा सीखिए, दर्द-ए-मोहब्बत की दवा लीजिये और ओपी की संगीत के प्रति दीवानगी का एहतराम कीजिये.
है दुनिया उसी की, ज़माना उसी का
मोहब्बत मे जो हो गया हो किसी का
लुटा जो मुसाफिर दिल के सफ़र मे
है जन्नत यह दुनिया उसकी नज़र मे
उसी ने है लूटा मज़ा ज़िंदगी का
मोहब्बत मे जो हो गया हो किसी का
है सजदे के काबिल हर वो दीवाना
के जो बन गया हो तसवीर-ए-जाना
करो एहतराम उस की दीवानगी का
मोहब्बत मे जो हो गया हो किसी का
बर्बाद होना जिसकी अदा हो
दर्द-ए-मोहब्बत जिसकी दवा हो
सताएगा क्या गम उसे ज़िंदगी का
मोहब्बत मे जो हो गया हो किसी का
है दुनिया उसी की, ज़माना उसी का
मोहब्बत मे जो हो गया हो किसी का
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रुचिता तिवारी/ अमित श्रीवास्तव
यह कॉलम अमित श्रीवास्तव और रुचिता तिवारी की संगीतमय जुगलबंदी है. मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा यह लेख रुचिता तिवारी द्वारा लिखा गया है. इस लेख का अनुवाद अमित श्रीवास्तव द्वारा काफल ट्री के पाठकों के लिये विशेष रूप से किया गया है. संगीत और पेंटिंग में रुचि रखने वाली रुचिता तिवारी उत्तराखंड सरकार के वित्त सेवा विभाग में कार्यरत हैं.
उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं. 6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी दो किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता). काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
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लेख कमाल, अनुवाद और कमाल का लगा ही नहीं कि अनूदित लेख है। वैसे लेखिका बधाई की पात्र हैं। संगीत का ऐसा ज्ञान और साथ में भाषा की ऐसी रवानी सब कुछ कमाल।
Thanks for remembering one of my favorite musician.The explaination is fantastic. How life live with ego ,OP is perfect example. I never heard anyone from film industry, who lived his life in such a egoistic manner. OP never compromise on his value till his death despite of so adverse condition.
the blending fro one rhythm to another without a clue of patch was OPN speciality , much can be said about his distinct style of orchestra !
बहुत शानदार पोस्ट। कितनी गहराई से नैयर साहब की संगीत यात्रा का विश्लेषण किया है। संगीत का इतना विलक्षण ज्ञान, कमाल। इसके लिए रुचिता जी बधाई की पात्र हैं साथ ही पोस्ट का सरस अनुवाद कर अमित जी ने पाठकों को आनंदित किया है।
जिस तरह से लेखिका ने समझाया है उनके संगीत और शब्द ज्ञान पर नाज होता है ह्रदय से उनको बधाई शुभकामनाएं