भारतीय रुपये में गिरावट का दौर जारी है. शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 21 पैसे की गिरावट के साथ 70.95 के स्तर पर खुला. कारोबार के शुरुआत कुछ मिनटों में ही रुपये ने 71 रुपये/डॉलर के स्तर को भी छू लिया. इस साल अभी तक भारतीय रुपया 10 फीसदी से ज्यादा कमजोर हो चुका है.
2018 की शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में एक डॉलर 63.90 रुपये का था.बीते कुछ हफ्तों से रुपये को थामने की भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की कोशिश प्रभावी साबित हो रही थी. लेकिन पिछले हफ्ते अमेरिका में ब्याज दर के बढ़ते ही स्थिति पहले से भी ज्यादा खराब हो गई है.
40 फीसदी बैंकर्स का मानना है कि डॉलर के मुकाबले रुपया 72 तक टूट सकता है, जबकि 20 फीसदी बैंकर्स के मुताबिक डॉलर के मुकाबले रुपया 71.5 तक गिर सकता है. वहीं, 20 फीसदी बैंकर्स ने कहा कि डॉलर के मुकाबले रुपया 74 तक लुढ़क सकता है, जबकि 20 फीसदी बैंकर्स की मानें तो डॉलर के मुकाबले रुपया 73 के स्तर तक आ सकता है.
अमेरिका की ओर से ईरान को लेकर दी गई सख्ती के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में बदलाव को भी वजह बताया जा रहा है. भारत कच्चे की तेल की खरीद का 80 प्रतिशत बाहर से मांगता है और विदेशी कच्चे तेल की कीमतों में बदलाव का असर रुपए पर देखा जा सकता है. इसके अलावा का कच्चे तेल की जरुरतों में भी लगातार इजाफा हो रहा है इसके चलते भी कीमतों में बढोत्तरी हुई और रुपय पर इसका असर देखा गया.
2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी के एक दशक बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था अब लगभग सामान्य हो गई है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती और ब्याज दर में बढ़ोत्तरी की वजह से बहुतेरे निवेशक भारत और दुनिया के दूसरे देशों से अपना निवेश निकाल कर अमेरिका ले जाने लगे हैं. इससे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में डॉलर की मांग कम नहीं हो रही है.
एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.
रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का आयात महंगा हो जाएगा. तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल की घरेलू कीमतों में बढ़ोतरी कर सकती हैं. डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई में तेजी आ सकती है. आरबीआई ने अप्रैल में बताया था कि रुपये के तीन डॉॅलर से ज्यादा कमजोर होने पर खुदरा महंगाई में 0.15 फीसदी की वृद्धि हो जाती है. हालांकि कमजोर रुपये से देश के निर्यात को मजबूती मिल सकती है. क्योंकि ऐसे में विदेशी ग्राहकों को भारतीय चीजें सस्ती लगने लगती हैं.
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