Featured

देवताओं की भाषा के वाद्य हैं ढोल-दमाऊ

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये क्लिक करें – Support Kafal Tree

इंसानी सभ्यता के विकास का इतिहास, अलौकिक सत्ता की वाह्य पर्तों को खोजने भर तक ही सीमित रहा है. भारतीय समाज में हम पुरातन समय से आकाशवाणी, संजय दृष्टि और पिशाच सिद्धि से प्रेत-संवाद जैसे नामों को सुनते रहे हैं. लेकिन इन सबको हमने इंटरनेट के आविष्कार के पहले तक निरा और निरा अंधविश्वास ही माना.
(Dhol Damau Uttarakhand Traditional Folk)

आज जब हम वेबीनार के जरिए बहुत दूर वार्ता करते हैं, दृश्य को देखते हैं और सात समंदर की दूरियों को मिनटों में पार कर लेते हैं तो यह मानना और आभास करना अब आसान हो गया है कि अलौकिक संसार में जिस आकाशवाणी, संजय दृष्टि और पिशाच सिद्धि से प्रेत- वार्ता आदि असंभव सी विद्याओं को हम जानते हैं वह संभव थी.

यह विज्ञान की अलौकिक जगत को एक बड़ी उपलब्धि है. यदि हम हिमालय की परंपरा में विश्वास करते हैं तो हम पाते हैं कि इस प्रकार के अलौकिक चमत्कारों को देखा जाना, उच्च हिमालय क्षेत्र में बहुत सामान्य है और काफी हद तक यह पर्वतवासियों की दिनचर्या का हिस्सा भी हैं.

आपके आस-पास ऐसी महिलाएं और पुरुष जरूर होंगे जो यक्ष-यक्षिणी और गंधर्व राक्षसों को जो विशालकाय थे तथा वायु मार्ग में विचरण करते हैं, को देखने की बातें करते होंगे. स्थानीय समाज इन्हें आंछरी नाम से जानता है.
(Dhol Damau Uttarakhand Traditional Folk)

साधुओं की परंपरा में हम देखते हैं कि शिष्य चिलम हवा में उछालते हैं और वह वहां रुक कर समाप्त हो जाती है. गुरु गोरखनाथ और मछंदर नाथ जी की परंपरा में जो नाथ साधु आज भी उच्च हिमालय क्षेत्र में छह-छह माह से अधिक शीतकाल में 30-30 फुट बर्फ के भीतर समाधिरत् हैं उनके जीवन और भोजन की व्यवस्था इस पारलौकिक विधान से ही संभव हो रही है. हठयोग में आज्ञा चक्र जागृत साधकों के साथ ऐसा होना सामान्य प्रक्रिया है यदि आप में इच्छा शक्ति हो तो ऐसे साधुओं को आप आज भी ढूंढ सकते हैं.

हिमालय की अलौकिक कथाओं का क्रम बहुत व्यापक है। इस अलौकिक संसार का एक बहुत ही लोकप्रिय वाद्य है ढोल और उसका सहायक दमाऊ. मान्यता है कि ढोल एक वाद्य यंत्र नहीं बल्कि शिव का ही रूप है जिसे भगवान शिव ने उत्तराखंड में निवासरत् दास तथा औजी समुदाय को स्वयं देकर उन्हें सिद्ध किया. यह शास्त्र मौखिक परंपरा और अभ्यास से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्नांतरित होता रहा है. प्रारंभ में इसका कोई लिखित शास्त्र नहीं था कालांतर में ढोल-सागर की रचना की गई .

1932 में पौड़ी गढ़वाल से प्रकाशित पंडित ब्रह्मानंद थपलियाल जी का “ढोल-सागर” प्रमाणिक ग्रंथ माना जाता है। जिसमें 300 से अधिक देव-संवाद सूत्रों का उल्लेख है. लुप्त होती इस विद्या के जानकार जिन्हें कुमाऊं में औजी कहा जाता है, कुमाऊं में बहुत कम हो गए हैं. गढ़वाल में टिहरी गढ़वाल व यमुना घाटी में अभी इस विद्या के जानकार लोगों की संख्या ठीक-ठाक है.
(Dhol Damau Uttarakhand Traditional Folk)

ढोल-सागर के जानकार तथा नक्षत्र वैधशाला देवप्रयाग के संचालक आचार्य भास्कर जोशी इस प्राचीन विद्या के साथ ही अन्य देव विद्या तथा वैदिक साहित्य के संरक्षण में जुटे हुए हैं. वह आसपास के दास संप्रदाय के युवकों को इस विधा को जिंदा रखने के लिए ढोल वादन का प्रशिक्षण भी देते हैं.

आचार्य भास्कर जोशी इस देव वाद्य का वर्णन करते हुए बताते हैं कि ढोल शिव का स्वरूप है. इसके दोनों पूडे़ सूर्य और चंद्रमा हैं. लकड़ी के विजय-सार में तीन नेत्र हैं. इन नेत्रों की सिद्धि से ही दास अदृश्य शक्तियों को देख और संचालित कर पाता है. एक ओर के 12 कुंडे, 12 माह का प्रतिनीधित्व करते हैं, कसकर जब यह कुंडे दूसरे छोर पर पहुंचते हैं तो कुल मिलाकर 24 पक्ष का एक साल बन जाते हैं. जिस माह में देव आराधना होती है उस माह और पक्ष के कुंडे विशेष जोर देकर कसा जाता हैं. वैसे तो ढोल सागर देवताओं के संवाद की कला है लेकिन देव कृपा से लोक जीवन के संचालन की आज्ञा भी इस वाद्य यंत्र को प्राप्त हुई है.

युद्ध, देव जागरण, महामारी नाश और शांति इस विधा की सामान्य बजाई है जिसके लिए विशेष अभ्यास की आवश्यकता होती है. देवताओं का यह वाद्य यंत्र आज भी उत्तराखंड का गौरव और पहचान है.
(Dhol Damau Uttarakhand Traditional Folk)

प्रमोद साह

हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

इसे भी पढ़ें : नैनीताल में पहला डोसा और छुरी-काँटा

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

कानून के दरवाजे पर : फ़्रेंज़ काफ़्का की कहानी

-अनुवाद : सुकेश साहनी कानून के द्वार पर रखवाला खड़ा है. उस देश का एक…

3 days ago

अमृता प्रीतम की कहानी : जंगली बूटी

अंगूरी, मेरे पड़ोसियों के पड़ोसियों के पड़ोसियों के घर, उनके बड़े ही पुराने नौकर की…

5 days ago

अंतिम प्यार : रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी

आर्ट स्कूल के प्रोफेसर मनमोहन बाबू घर पर बैठे मित्रों के साथ मनोरंजन कर रहे…

6 days ago

माँ का सिलबट्टे से प्रेम

स्त्री अपने घर के वृत्त में ही परिवर्तन के चाक पर घूमती रहती है. वह…

7 days ago

‘राजुला मालूशाही’ ख्वाबों में बनी एक प्रेम कहानी

कोक स्टूडियो में, कमला देवी, नेहा कक्कड़ और नितेश बिष्ट (हुड़का) की बंदगी में कुमाऊं…

1 week ago

भूत की चुटिया हाथ

लोगों के नौनिहाल स्कूल पढ़ने जाते और गब्दू गुएरों (ग्वालों) के साथ गुच्छी खेलने सामने…

1 week ago