Featured

सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं : शकील बदायूंनी

इंसाफ की डगर पे बच्चो दिखाओ चलके… ये देश है तुम्हारा नेता तुम्हीं हो कल के… सचमुच शकील बदायूंनी के ये गीत नहीं बल्कि एक आंदोलन है. बरसों पुराने ये नगमे आज भी अमर और लाजवाब है. इनको सुनकर देश के जांबाज सैनिकों के खून में दुश्मन के खिलाफ उबाल आता है तो नौनिहालों के मन में देशभक्ति की भावना के अंकुर जरूर फूटते हैं.

स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस या अन्य राष्ट्रीय पर्वों पर इन गीतों की गूंज कानों में रस जरूर घोलती है. इल्म से फिल्म तक का कामयाब सफर तय करके तमाम फिल्मों में सदाबहार नगमे लिखकर वो अमर हो गए.

आमतौर पर शकील बदायूंनी को रूमानी शायर कहा जाता है. अगर ईमानदारी के चश्मे से देखा जाए तो उनके कलाम में हर वह रंग शामिल है, जिसकी समाज को दरकार है. उनके कलाम में साकी, मयखाना, शिकस्ता दिल, जिगर वगैरह सभी का बेहद खूबसूरती के साथ जिक्र मिलता है. साथ ही उन्होंने समाज की सच्ची तस्वीर को भी अपने अलफाज में बयां किया है. अपने गीत और गजलों के जरिए शकील आज भी जिंदा हैं. उन्होंने सभी तरह की शायरी की, चाहे वह रूमानी हो या मजहबी. सभी पहलुओं पर खूब बेबाकी और साफगोई से काम किया और नाम कमाया. शकील साहब अपनी शायरी में समाज और खुद से एक साथ सवाल भी किए हैं. उसकी एक बानगी यह भी है-

न सोचा था दिल लगाने से पहले, कि टूटेगा दिल मुस्कुराने से पहले.
हर गम उठाना था किस्मत में अपनी, खुशी क्यों मिली गम उठाने से पहले?

समाज मे प्यार फेलाने की एक बानगी देखिए-

प्यार की आंधी रुक न सकेगी नफरत की दीवारों से,
खूने मुहब्बत हो न सकेगा खंजर से तलवारों से.

अब्दुल गफ्फार उर्फ शकील बदायूंनी का जन्म 13 अगस्त 1916 को उत्तर प्रदेश के शहर बदायूं के मुहल्ला वैदों टोला में जमील अहमद सोख्ता के यहां हुआ था. चूंकि घर में अदबी (साहित्यिक) माहौल था, इसलिए शायरी के प्रति शुरू से ही रुझान था. शहर के हाफिज् सिद्दीक इस्लामिया हायर सेकेंड्री स्कूल से 10वीं पास किया. इसी बीच 24 साल की उम्र में सलमा बी के साथ शादी हो गई. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से 1937 में बीए पास किया और शायरी के समंदर में डूबते चले गए. अक्सर यूनिवर्सिटी लेबिल पर शायरी के मुकाबलों में शरीक होकर कई एवार्ड हासिल किए. इसके बाद 1943 तक दिल्ली में सप्लाई आफिसर के पद पर नौकरी की. इस दौरान भी शायरी करते हुए अपने फन को निखारते रहे.

सन 1946 में उन्होंने दिल्ली के एक मुशायरे में नई गजल पढ़ी- गमे आशिकी से कह दो रहे आम तक न पहुंचे, मुझे खौफ है कि तोहमत मेरे नाम तक न पहुंचे. मैं नजर से पी रहा था तो दिल ने बद दुआ दी, तेरा हाथ जिंदगी भर कभी जाम तक न पहुंचे. इसको सुनकर फिल्म डयरेक्टर एआर कारदार ने फिल्मी दुनिया में आने का बुलावा दे दिया. इसके बाद वह मुम्बई चले गए. फिर महान संगीतकार नौशाद से मुलाकात हुई. उनके संगीत वाली फिल्म दर्द के सभी गाने लिखने का मौका मिला. नौशाद के कहने पर शकील बदायूंनी ने यह गीत लिखा…

हम दिल का अफसाना दुनिया को सुना देंगे,
हर दिल में मुहब्बत की आग लगा देंगे…

यह सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि फिर पीछे मड़कर नहीं देखा. उन्होंने उड़न खटोला, कोहिनूर, मुगले आजम, आन दीदार, गंगा-जमुना, लीडर, संघर्ष, आदमी समेत लगभग 100 फिल्मों के गाने लिखे.

भजन, नात दोनों में कमाल

शकील बदायूंनी अपने समय के इकलौते सभी के महबूब शायर हैं. उन्होंने भक्ति रस में खूब काम किया. ऐसा नहीं कि किसी खास वर्ग की भक्ति में लिखा हो, बल्कि अन्य धर्मों का भी ध्यान रखा है. उनकी लिखी नात और मनकबत को खूब पसंद किया जाता है. वहीं भजनों में भी बराबर की हिस्सेदारी रही है. मन तड़पत हरि दर्शन को आज, राधा के प्यारे कृष्ण कन्हाई, इंसाफ का मंदिर, मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयोे रे… आदि भजनों को खूब पसंद किया जाता है.

इसी तरह अपनी अकीदत को यूं भी बयां किया है-

काश मौत ही न आ जाए ऐसे जीने से,
आशिके नबी होकर भी दूर हैं मदीने से…

सभी को जोड़ते हुए कहते हैं-

मंदिर में तू मस्जिद में और तू ही है ईमानों में,
मुरल की तानों में तू और तू ही है अजानों में…

अमर हो गए गीत- उनके गीत इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओं चलके… सुनकर देशभक्ति की भावना का संचार होता है. वहीं अन्य गाने भी प्रेम का संचार करते हैं. गीत प्यार किया तो डरना क्या, ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ ले ले, आज पुरानी राहों से, जिंदगी देने वाले सुन, मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोए, अफसाना लिख रही हूं, यह जिंदगी के मेले, छोड़ बाबुल का घर, जोगन बन जाऊंगी सइयां तोरे कारन, ओ दुनिया के रखवाले, चले आज तुम जहां से, चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, तेरी महफिल में किस्मत आजमाकर, पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया, मधुबन में राधिका नाचे रे… आदि गीतों ने अपने समय में खूब धूम मचाई और आज भी यह सदाबहार हैं.

आठ बार मिला फिल्म फेयर

उनके लिखे गानों वाली तीन फिल्मों को लगातार फिल्म फेयर एवार्ड मिला था. फिल्म चैदहवीं का चांद, घराना, बीस साल बाद को यह एवार्ड मिला था. उन्हें खुद आठ बार यह एवार्ड हासिल हुआ. यह अपने आप में एक रिकार्ड और मिसाल है. सदी की सबसे अच्छी फिल्म मुगले आजम के सभी गाने लिखे. सैकड़ों फिल्मों में अमर गीत लिखकर सारी दुनिया में छोटे से शहर का नाम रोशन कर दिया.

साहित्य में भी महारत

आमतौर पर कुछ साहित्यकार शकील बदायूंनी को फिल्मी शायर मानते हैं. उनकी तमाम गजलों समेत भक्ति शायरी इस बात का पुख्ता सुबूत है कि वह सिर्फ फिल्मी शायर नहीं थे. उन्होंने साहित्य में भी भरपूर योगदान दिया है. उनकी किताब रानाइयां, नगमा-ए फिरदौस, सनम-ओ-हरम, दबिस्तान, धरती को आकाश पुकारे आदि किताबें अद्वितीय शायरी से भरी पड़ी हैं. जरूरत इस बात की है इनको करीब से देखा जाए.

 

बदायूं के रहने वाले अरशद रसूल 2007 से पत्रकारिता से जुड़े हैं. अब तक अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान अखबारों में काम कर चुके अरशद वर्तमान में स्वतंत्रत पत्रकार के रूप में कार्य कर रहें हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

6 days ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

6 days ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

1 week ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

2 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago