गायत्री आर्य

जब नई-नवेली मां को मदद की ज्यादा जरूरत होती है, तब वह बिल्कुल अकेली होती है

4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – 51 (Column by Gayatree arya 51)
पिछली किस्त का लिंक: जहां तुम्हारी नजरें टिकी थी उसी जिस्म में तुम नौ महीने कैद थे

डॉक्टर मेरे बिल्कुल ताजे जख्मों को हाथ से खंगालता रहा, क्योंकि वो जज कर रहा था कि अंदर कितनी गड़बड़ हुई है. मेरे जख्म की न सिर्फ सिलाई गलत हुई थी, बल्कि मेरी बच्चेदानी पूरी तरह फट गई थी, एनस फट गया था, डिलीवरी के वक्त. डॉक्टर समझ नहीं पर रहा था कि ऐसा कैसे हुआ. उस नर्स ने अंदर से न सील कर, सिर्फ आउटर वैजाइना सिल दिया था. इस कारण पिछले तीन घंटों से अंदर ही अंदर लगातार ब्लिडिंग होती रही. डॉक्टर बार-बार कह रहा था ‘सिविअर हेमोटोमा‘ हो गया है. मतलब कि शरीर के भीतर बहुत बड़े हिस्से में खून जम गया था. मेरे पेट के निचले हिस्से और दाहिने पैर की थाई में खून जमा हो चुका था.

यदि डॉक्टर एक-दो घंटे और न आता तो मैं मर जाती और तुम हमेशा-हमेशा के लिए अपनी मां को खो देते. ऐसा उस डॉक्टर ने कहा था. बावजूद इसके कि डिलीवरी के समय तुम्हारी मां का हिमोग्लोबिन 13 था. अक्सर स्त्रियां और खासतौर से गर्भवती स्त्रियां एनीमिया की शिकार होती हैं, लेकिन तुम्हारी मां बेहद अच्छे हिमोग्लोबिन के बावजूद, खून बहने से मर ही जाती. सोचो जरा उस नर्स की गलती की सजा किसे मिलती? सबसे ज्यादा तो तुम्हें ही. मैं उसके लिए कोई एक्सपरीमेंट थी.

वह मिलट्री हास्पिटल में ऑपरेशन का दिन था. डॉक्टर शायद सुबह से ओ.टी. में ही था. कुछ तो थकान, कुछ मेरे केस का बिगड़ जाना, कुछ सुबह वाला गुस्सा और ऊपर से मेरी भयानक कराहें और चीखें, डॉक्टर और ज्यादा गुस्सा हो गया. मेरे दर्द से चीखने पर वो चिल्लाया ‘ऐ लड़की! ऐ औरत! बिल्कुल आवाज नहीं. बिल्कुल चुप. मैंने कहा था बच्चा पैदा करने को! मैं साला सुबह से खाना खाने तक नहीं गया,…ऐऽऽ! तेरी जान बचाने के लिए ही कर रहा हूं. आवाज नहीं. बेहोश भी नहीं करूंगा तुझे, देखना.’ वो डांटता रहा. गुस्से में एक बार उसने मेरे हाथ पर मारा भी.

दर्द की भयानकता का अंदाजा शायद तुम इस बात से लगा सको, कि सिर से कमर तक का हिस्सा कई बार झटके से 70-80 डिग्री के कोण तक उठा होगा दर्द बर्दाश्त न होने पर, उफ्फ उस दर्द को बर्दाश्त करने से अच्छा मैं मर ही क्यों न गई उस वक्त. वो प्रसव पीड़ा से कहीं-कहीं ज्यादा भयानक दर्द था. डॉक्टर मेरे बिल्कुल ताजे और कच्चे जख्मों को बिना मुझे बेहोश किये अपने हाथों से कुरेद रहा था. अपनी चीखों को दबाने के लिए, मैं बार-बार दांतों को अपने दाहिने हाथ में गड़ाती. डॉक्टर की डांट से बचने के चलते, अपनी दर्द की चीख को दबाने के लिए, मैंने इतनी बार दांतों को अपने हाथ में गाड़ा था कि हाथ में नील पड़ गए थे.

दर्द और तड़प के उस भीषण संग्राम में सिर्फ तुम ही थे जो मेरे सबसे पास थे. जो मेरी चीखें, कराह, तड़प को सुन तो रहे थे. लेकिन मेरी तकलीफ का जरा सा भी अहसास तुम्हें नहीं था, मेरे मासूम बच्चे! तुम तो खुद ही उस वक्त बाहर की दुनिया की आंखफोडू रोशनी, कानफोडू शोर और वहां के मौसम से लड़ रहे होगे. मैं उस वक्त किस दौर से गुजर रही थी, इसकी किसी को खबर तक नहीं थी. मेरे मां-बाप, भाई-बहन, तुम्हारे पिता, मेरे सास-ससुर… कोई भी नहीं जानता था कि मैं किस दर्द की खाई में दोबारा पटक दी गई हूं. तुम्हारे सबसे पास होते हुए भी मैं निपट अकेली थी मेरे बेटे! बिल्कुल अकेली. डॉक्टर ने कहा ‘ऑपरेशन होगा, कुछ खाना मत’ और वह चला गया. ‘क्या वो सच में बिना बेहोश किये ही मेरा ऑपरेशन करेगा? ‘मैंने सोचा और दर्द के तीसरे भयानक दौर से बचने के लिए दिल से अपने मरने की दुआ मांगी.

मुझे ओ.टी. में ले जाया गया और मेरी कमर में बेहोशी का इंजेक्शन दिया गया. मुझे होश था लेकिन मेरी कमर से नीचे का हिस्सा सुन्न हो गया था. मैंने राहत की सांस ली. लगभग पौने घंटे तक ऑपरेशन चला. तब तक मेरी सास व तुम्हारे पिता को भी ऑपरेशन के बारे में पता चल गया था. मुझे वापस ‘इंटेसिव केयर यूनिट‘ में लाया गया. उस वक्त मैंने तुम्हारे पिता को देखा और मैं रो पड़ी, मैंने बस इतना ही कहा ‘मुझे मां से बात करनी है.’ चार लोगों ने मुझे स्ट्रेचर पर उठाया हुआ था, ठीक वैसे ही जैसे किसी की अर्थी उठाई जाती है, पर सौभाग्य से तुम्हारी मां जिंदा बच गई थी.

मुझे स्ट्रेचर से बैड पर शिफ्ट किया गया. तुम्हारे पिता ने मेरी मां से बात कराई. मां की आवाज सुनते ही मैं फफक-फफक कर जोर से रोई ‘कहां हो मां? मुझे फाड़ डाला है इन लोगों ने. आपको मेरे पास होना चाहिए था. कहां हो मां? आपको होना चाहिए था अभी मेरे पास मां!’ तुम्हारी नानी को संक्षेप में मैंने सब बताया और मेरा थोड़ा सा गुबार निकला. मां ने पूछा ‘बच्चा कहां है? तेरे पास है?’ मैंने जवाब दिया, ‘मुझे नहीं पता कहां है. मुझे किसी से नहीं मिलना, सिर्फ आपसे मिलना है.‘ मां ने बेहद प्यार से कहा ‘ऐसे मत कह बेटा, अपने जी में ममता ला बेटा, नहीं तो फिर दूध भी नहीं उतरेगा.’ मैं इतने भयंकर दर्द में थी कि सच में ममता मेरे भीतर फूट ही नहीं पा रही थी.

लेकिन सच यही है मेरे बच्चे! कि दर्द के इस तेजाबी समंदर में गोते लगा-लगा कर मेरी ममता सूख गई थी. इतनी तकलीफ और दर्द में तुम्हारी मां ममता नहीं जगा सकती थी और बहुत समय तक ऐसा रहा. तुम चाहो तो मुझे अपना गुनहगार मान सकते हो, पर मैं खुद को नहीं मानती गुनहगार. मैं कितने तरह के दर्दों से अकेले लड़ रही थी और लड़ते ही जा रही थी, ये सिर्फ मैं ही जानती हूं.

मुझे पेशाब की नली भी लगी थी. डिलीवरी के पांच-छः दिनों तक मुझे कुछ भी खाने से मना किया गया था, क्योंकि मेरे फटे हुए एनस को सीला गया था. छः दिनों तक मैं सिर्फ ग्लूकोज और एंटीबायोटिक पीती रही. यही मेरा पौष्टिक खाना-पीना था पांच दिनों तक. उसी आपॅरेशन की रात को ही तुम्हें मेरे पास लाया गया, क्योंकि उस दिन कई डिलिवरियां हुई थी और इक्यूबीयेटर में बच्चे रखने की जगह नहीं बची थी. तुम्हारे मेरे पास आने से मैं उदास हो गई. क्योंकि मैं किसी भी सूरत में बैठने की तो क्या, हिलने की भी स्थिति में नहीं थी और ऐसे हाल में मुझे अकेले को तुम्हें संभालना था. एम.एच. में किसी भी बाहर वाले को मरीज के पास रुकने की अनुमति नहीं थी. कितना बेकार का नियम है. जब नई-नवेली मां को मदद की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब वो बिल्कुल अकेली होती है.

तुम्हें कई बार इंजेक्शन से दूध पिलाया जा चुका था. जब तक मांएं खुद बच्चे को दूध पिलाने की स्थिति में नहीं होती हैं, उन्हें नर्सें ही लेक्टोजन पिलाती हैं इंजेक्शन की मदद से. रात में एक नर्स मेरे पास आई और मेरी बांई छाती के निप्पल को जोर से दबाकर उसने कहा ‘दूध तो बन रहा है’. मैं फिर से दर्द में तड़पकर रह गई. उसके कहने का उसका मतलब था, कि अब मुझे तुम्हें लेक्टोजन मांगकर पिलाना बंद करके, अपना दूध पिलाना शुरू कर देना चाहिए. तुम्हारे जन्म की उस पहली रात तुम्हें इंजेक्शन से ही दूध पिलाया गया था. आज भी ये सब लिखते हुए मेरी पलकें भीग गई हैं. मैं ये सब तुम्हें लिख रही हूं, ताकि तुम्हें जरा सा अहसास हो कि तुम्हारी मां ने कैसे दर्द के कई समंदर पीकर तुम्हें जन्म दिया है. मेरे बच्चे! मेरे प्यार!
(6.45 पी.एम/28.03.2010)

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उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.

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Sudhir Kumar

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