फोटो: साभार, विकिपीडिया
कुमाऊँ के मध्यकालीन शासकों में चंद्रवंशी राजा रुद्रचन्द ख़ास महत्त्व रखते हैं. रुद्रचन्द स्वयं विद्वान थे और विद्वानों का आदर भी किया करते थे. वे एक बेहतरीन कवि और नाटककार थे. वे संस्कृत के न सिर्फ अच्छे जानकार थे बल्कि उन्होंने अनेक नेपाली छात्रों को राजकीय छात्रवृत्ति पर अध्ययन करने के लिए वाराणसी भी भेजा. वे एक दानी रजा होने के साथ-साथ बेहतरीन प्रशासक भी थे.
उनके खुद के नाम से तीन ग्रन्थ मिलते हैं, श्येनशास्त्र, उषारागोदय तथा त्रैवर्णिक धर्म निर्णय. इनमें से पहले 2 ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं, तीसरा अप्रकाशित ही है जिसकी मूल पाण्डुलिपि नेशनल लाइब्रेरी कलकत्ता में मौजूद है.
रुद्रचन्द अल्मोड़ा को राजधानी बनाने वाले चन्द शासक कल्याणचन्द के पुत्र थे. रुद्रचन्द अपने पिता कल्याणचन्द की मृत्यु के बाद 1565 ई. में सिंहासन में बैठे. कहा जाता है कि बालो कल्याणचन्द की रानी डोटी (पश्चिमी नेपाल) के प्रतापी मल्ल शासक के बेटी थी. उसके विवाह में भाई रैका राजा हरिमल्ल ने पिथौरागढ़ का सोर प्रान्त बहन को दहेज़ में दे दिया. लेकिन राजा कल्याणचन्द सीरा की उपजाऊ घटी को भी अपने राज्य में मिलाना चाहते थे, उनका यह ख्वाब कभी पूरा नहीं हो सका.
उनकी मृत्यु के बाद रानी ने प्रतिज्ञा की कि जब तक उनका पुत्र सीरा को नहीं जीतेगा तब तक वे सती नहीं होंगी. अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए रुद्रचन्द ने सीरा पर 7 बार आक्रमण किया. इस आक्रमण का नेतृत्व उनके सेनापति पुरुख पंत ने किया 1581 में सीरागढ़ जीतकर रुद्रचन्द ने अपने पिता की यह अंतिम इच्छा पूरी की.
उस समय पीलीभीत से लेकर अफजलगढ़ तक का तराई क्षेत्र रुहेलों व कठेहड़ी राजपूतों की लूटपाट से थर्राता था. रुद्रचन्द ने इनके खिलाफ युद्ध छेड़कर इस क्षेत्र को अधिकृत किया और तत्कालीन मुग़ल शासक अकबर से ‘नौलखिया माल’ कहे जाने वाले 84 कोस के इस क्षेत्र को जागीर के रूप में हासिल कर लिया. उन्होंने इस क्षेत्र की शासन व्यवस्था को सुधारा और वर्तमान रुद्रपुर मंडी को आबाद कर वहां एक मजबूत किले की बुनियाद रखी.
रुद्रचन्द ने माल क्षेत्र की शासन व्यवस्था को सँभालने का जिम्मा काशीनाथ अधिकारी को दिया. काशीनाथ एक योग्य शासक साबित हुए, उन्होंने काशीपुर नगर भी बसाया.
कहा जाता है कि राजा रुद्रचन्द की सम्राट अकबर के मंत्री बीरबल और राजा टोडरमल के साथ गाढ़ी दोस्त थी. रुद्रचन्द ने बीरबल को पुरौहित्य का स्थान दिया था और चन्द वंश के अंतिम शासक के समय तक बीरबल अल्मोड़ा के दरबार में आते रहते थे.
(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डी. डी. शर्मा के आधार पर)
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…
हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष की…
उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…
देवेन्द्र मेवाड़ी साहित्य की दुनिया में मेरा पहला प्यार था. दुर्भाग्य से हममें से कोई…
किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…
गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…
View Comments
सुधीर कुमार के आलेख "राजा रूद्र चंद के दरबार में आया करते थे बीरबल " में प्रयोग किया गया अल्मोड़े का फोटो मेरी फेस-बुक वाल से बिना मेरी स्वीकृति के लिया गया है और मेरे नाम का भी कहीं उल्लेख नहीं किया गया है ऐसे में इस लेख की मौलिकता भी संदेह के दायरे में आती है
यह फोटो कुमाऊनी, पहाड़ी फसक व कुमाऊनी शब्द सम्पदा के फेसबुक पेज पर मौजूद था, इसे वहीँ कहीं से उठाया गया. इसका मूल स्रोत पता न होने के कारण उसका उल्लेख भी नहीं किया गया. खेद सहित अब इसे यहाँ से हटा लिया गया है. इस लेख के स्रोत का उल्लेख पोस्ट में पहले से ही मौजूद है.