कुछ सालों से पहाड़ी जिलों में बंदरों का आतंक और ज्यादा बढ़ गया है. बंदर फसल और बागबानी को चौपट कर रहे हैं. पहाड़ में खेती अब जिस तरह घाटे का सौदा हो चुकी है उसमें जंगली जानवरों – ख़ास तौर से बंदरों की मुख्य भूमिका है. (Carbide Gun For Farmers)
हालात ऐसे हो गए हाँ कि जंगल छोड़ बंदर घरों के अंदर दस्तक देने लगे हैं. गाँवों, मोहल्लों में लोगों पर हमला कर रहे हैं.
बंदरों के आतंक से छुटकारा दिलाने के लिए अल्मोड़ा के विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक खास बंदूक तैयार की है. पहाड़ में जो भी लोग सुबह से शाम तक बंदरों से फसल या घरों में रखे सामान की हिफाजत करने के लिए पहरेदारी किया करते हैं उन लोगों के लिए ये बंदूक बेहद खास और कारगर है.
इस बंदूक की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इससे बंदर मारे नहीं जाएंगे. इसकी आवाज से बंदर डराए जाएंगे. लंबे समय से कई ट्रायल के बाद वैज्ञानिकों ने बंदरों को भगाने के लिए ये विशेष बंदूक तैयार की है.
अगले माह विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा में इसका फाइनल ट्रायल किया जायेगा. इसके बाद बंदूक आम लोगों के लिए उपलब्ध करा दी जायेगी.
विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने कार्बाइड (फलों को पकाने वाला रसायन) बंदूक तैयार की है. इस बंदूक के लिए बकायदा कार्बाइड की गोली भी तैयार की गयी है. यह गोली एक मानक के अनुसार पानी मिलाने पर बंदूक में मौजूद लाइटर से जलने पर तेज आवाज करेगी. यह आवाज बंदरों को भयभीत करती है और आवाज सुन बंदर भाग जाते हैं.
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वैज्ञानिकों ने यह भी दावा किया कि बीते एक साल में जिन स्थानों में बंदूक का ट्रायल किया गया. उन क्षेत्रों में बंदरों का आतंक बेहद कम हो गया. लिहाजा उन्होंने बंदूक को और ज्यादा अपडेट कर दिया है. इसे जल्द ही लोगों को उपलब्ध करवाया जायेगा.
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इनपुट: दैनिक हिन्दुस्तान से
प्रमोद डालाकोटी दैनिक हिन्दुस्तान के अल्मोड़ा प्रभारी हैं.
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बन्दरो के द्वारा पहाड़ो पर आये दिन होने वाले नुक़सान से निजात पाने के लिए ये कदम सराहनीय है। परंतु ये इस दिशा में कुछ कदमो का प्रयास माना जा सकता है, प्रश्न ये भी है कि हमें अपने हितो की रक्षा के लिए बन्दरो का भी कुछ हित सोचना ही होगा, आखिर वो भी जीव हैं इस वसुंधरा का हिस्सा हैं, इस बंदूक की आवाज से वे भाग कर जाएगे कहाँ? ? क्योंकि कई वर्ष पहले वे इतना अधिक नुक़सान करने आते नही थे क्योंकि उन्हें जंगलो में संभवतः अपने भरण पोषण के लिए मिल जाता था तथा उनकी पैदावार संख्या भी आज के तुलना में काफी कम होगी। अतः हमें और अधिक प्रयासों से बड़े स्तर पे गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए इसका बेहतर समाधान निकालना होगा । धन्यवाद
Kyon Na Ham Aisa kam Karen jisse Bandar Hamare ghar mein Na Aaye aur ham junglon Mein fal fruit ke ped paudhe lagaen
बन्दर बन्दूक की आवाज़ से कब तक डरते रहेंगे? आखिर एक समय के बाद उन्हें इसकी आदत पड़ जाएगी और तब वो डरना बन्द कर देंगे। इसलिए, स्थायी हल तो तभी निकलेगा जब हम खेतों से दूर जंगलों में उनके पोषण के लिए कुछ फल फूल के पेड़ लगाएंगे/छोड़ेंगे। अशोक रावत जी सही कह रहे हैं। इसी बात का सफ़ल प्रयोग पूर्वोत्तर के राज्यों में हो चुका है।