1856 से 1884 के बीच उत्तराखण्ड का कमिश्नर हेनरी रैमजे रहा. हेनरी रैमजे लार्ड डलहौजी का चचेरा भाई था. अंग्रेज इतिहासकारों ने भारत में अंग्रेजी राज के 10 निर्माताओं में हेनरी रैमजे को भी स्थान दिया है. कुमाऊँ में 28 वर्ष के लम्बे निरंकुश शासक को किंग ऑफ़ कुमाऊं कहा जाता था. उसका प्रशासन पूरी तरह से नवाबी ढंग का था.
रैमजे ने कुमाऊं क्षेत्र को गैर-आयनी यानि ऐसा हिस्सा जहाँ सामान्य कानून लागू नहीं होते, बनाये रखा. उसने ब्रिटिश भारत के कानून को कुमाऊं में विशेष भौगोलिक, राजनीतिक और सामजिक स्थिति के नाम पर ब्रिटिश भारत में लागू नियम कानूनों का प्रवेश कुमाऊँ क्षेत्र में नहीं होने दिया. उसके शासन काल के दौरान कुमाऊं में रैमजे के शब्द ही कानून थे. एक बार जो रैमजे कह देता वह पत्थर की लकीर हो जाता.
वह स्वयं को कुमाऊँ का लेफ्टिनेन्ट गवर्नर समझता था. कुमाऊं को अपनी रियासत समझकर उसने ब्रिटिश भारत के अन्य हिस्सों में लागू न्याय व्यवस्था, पुलिस प्रबंधन और भू-राजस्व के नियम यहाँ लागू नहीं होने दिये. उसे कुमाऊँ प्रदेश के न्यायिक मामलों में हाईकोर्ट के सामान अधिकार थे. अनेक बड़े विवादों का वह मौखिक फैसला सुना दिया करता.
अपने कार्यकाल में उसने कुमाऊं प्रदेश में नियमित सिविल पुलिस व्यवस्था लागू नहीं होने दी. इसका कहना था कि पहाड़ के लोग भोले-भाले होते हैं अतः इस इलाके में नियमित पुलिस की नियुक्ति उनके हित में नहीं है. इसलिये रैमजे ने पटवारी को ही पुलिस सब इंस्पेक्टर के अधिकार दे दिये. उत्तराखण्ड के ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी यह व्यवस्था लागू है.
रैमजे चार माह बिनसर, चार माह अल्मोड़ा और चार माह भाबर रहकर प्रशासन चलता था. बिना किसी आडम्बर के गाँव वालों के बीच बैठता, उनके बीच कुमाऊं की बोली बोलता और उचित आश्वासन भी देता. यही कारण था कि कठोर प्रशासन के बावजूद जनता पर रैमजे का अच्छा प्रभाव था और लोगों के बीच वह लोकप्रिय था.
उसके नाम पर अल्मोड़ा में इंटर तक की शिक्षा के लिए रैमजे कालेज बन गया. नैनीताल स्थित रैमजे अस्पताल उसी की न्याय निधि से बना. उसे जब कभी अवसर मिलता वह सामाजिक कार्यों में भी जनता के साथ रहता. वह एक ऐसा कमिश्नर था जिसे स्थानीय लोगों के साथ होली खेलते तक देखा जा सकता था.
रैमजे 1884 में सेवानिवृत्त हुआ. उसके बाद वह 1892 तक अल्मोड़ा में रैम्जे हाउस में ही रहा. कहा यहाँ तक जाता है कि रैम्जे को अल्मोड़ा शहर से प्यार हो गया था लेकिन उसके बेटे उसे जबरदस्ती अपने साथ इंग्लैंड लेकर गये.
रैमजे को सफल और सुदृढ़ बनाने में बद्रीदत्त जोशी का महत्त्वपूर्ण योगदान था. वह रैमजे के एकमात्र प्रमुख सलाहकार व सहयोगी थे. कुमाऊं कमिश्नरी में अंग्रेजों के शासन की जड़ जमाने का श्रेय रैमजे और बद्रीदत्त जोशी को ही जाता है. बद्रीदत्त जोशी वही व्यक्ति हैं जिन्होंने गोविन्द बल्लभ पन्त का पालन-पोषण किया था.
मदन मोहन करगेती की पुस्तक स्वतंत्रता आन्दोलन तथा स्वातंत्र्योतर उत्तराखण्ड के आधार पर
काफल ट्री डेस्क
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