बेड़ू पाको बारा माशा उत्तराखंड के सबसे लोकप्रिय लोकगीतों में है. वर्तमान में इसके अनेक रूप गाये जाते हैं. मूल रूप से बेड़ू पाको बारा माशा एक झोड़ा है. यही कारण है कि स्थान के अनुसार इसके साथ जोड़े गये अगले अंतरे अलग-अलग होते हैं.
(Bedu Pako Baramasa Original)
उत्तराखंड के लोक कलाकार मोहन उप्रेती ने इस गीत के विषय में कहते हैं कि यह गीत अधिकतर मेलों के अवसर पर गाया जाता है अल्मोड़े के प्रायः सभी भागों में प्रचलित हैं, इसकी धुन और लय अत्यधिक लोकप्रिय है. मोहन उप्रेती ने इस लोकगीत को कुछ इस तरह संकलित किया है –
(Bedu Pako Baramasa Original)
बेड़ू पाको बारा माशा, हो नरैण का फल पाको चैत मेरी छैला
रुणा भूंणा दिन आया हो नरैण पुजा मेरा मैत मेरी छैला
रौ की रौतेली लै हो नरैण माछो मारो गीड़ा मेरी छैला
त्यारा खूटा कान बुड़ौ हो नरैण म्यारा खूटा पीड़ा मेरी छैला
सवाई को बाल हो नरण सवाई को बाल मेरी छैला
मेरो हिया भरी ओंछ हो नरैण जसो नैनीताला मेरी छैला
बाकेरे की बसी हो नरैण बाकेरे की बसी मेरी छैला
देखां है छै पारा डाना रो नरैण ब्याणा तारा जसी मेरी छैला
लड़ी मरी के हो लो हो नरैण लड़ाई छ धोखा मेरी छैला
हरी भरी रई चैंछ हो नरैण धरती की कोख मेरी छैला
मोहन उप्रेती ‘बेड़ू पाको बारा माशा’ के इस रूप को अल्मोड़ा और रानीखेत के आस-पास के इलाकों का बताते हैं. संकलन में मोहन उप्रेती ‘बेड़ू पाको बारा माशा’ गीत का हिन्दी तर्जनुमा करते हुए लिखते हैं – बेड़ू का फल बारह महीने पकता है पर काफल केवल चैत के महीने में ही पकता है. गर्मियों के अलसाये हुए दिन आ गये हैं, मेरे प्रियतम मुझे मेरे मायके पहुँचा दो. रौतेली नाम की महिला ने नदी में मछली पकड़ी, मायके की बात, क्यों कहती है? क्या तुझे नहीं मालूम कि जब तेरे पैर में कभी कांटा चुभता हैं तो दर्द उसका मुझे भी होता है. मेरी प्यारी तेरे प्रेम से मेरा हृदय इस तरह छलकता रहता है जैसे बरसात में नैनीताल का ताल. जब तू मेरे तू सामने आती है मुझे ऐसा लगता है मानो भोर का तारा उदय हो गया है. ओ मेरी छैला लड़ने-झगड़ने से कोई लाभ नहीं, लड़ाई-झगड़ा सब धोखा है, हम सब की यही कामना है कि धरती की गोद हमेशा हरी-भरी फलती-फूलती रहे.
(Bedu Pako Baramasa Original)
‘बेड़ू पाको बारा माशा’ को शास्त्त्रीय धुन में यहां सुनिये –
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…