अल्मोड़े में होलिडे होम मुख्य सड़क मार्ग से थोड़ा उपर है. कैलाश मानसरोवर यात्रा के यात्रियों का पहला पड़ाव इसी हालिडे होम में बनता है. साल भर खामोश रहने वाले हालिडे होम में यात्रा सीजन में खासी चहल पहल दिखाई देती है. समूचा भारत जैसे अल्मोड़ा मे इस मध्यम आकार के गेस्ट हाउस में सिमट जाता है. विभिन्न भाषाओं के फूल कुमांऊं की मिट्टी में, हवा में,पानी में अपनी सुगंध बिखेरते मिलते है. (Almora Grandma Memoir Vivek Sonakiya)
इसी हाॅलिडे होम के ऊपर बने एक काॅटेज में लगभग छः महीने रहने का मौका मिला. यह इलाका अपने आप में भरा पूरा मुहल्ला था. इसी मुहल्ले की मुखिया थी आमां. (Almora Grandma Memoir Vivek Sonakiya)
आमां अर्थात दादी मां केवल उम्र से आमां थीं. स्टार और कलर्स टीवी पर आने वाले सास बहू के ड्रामों की खतरनाक एडिक्ट आमा को मुहल्ले के बच्चे सीरियल किलर कहते थे.
लगभग पचहत्तर साल की आमां की कमर अभी तक झुकी नहीं थी, चश्मा भी लगा नहीं था. कान अभी तक ठीक ठाक सुनते थे बस सामने के चार दांत एक बार बांज के पेड़ से गिर जाने पर टूट गये थे. दांत ऐसे टूटे कि दोबारा न उग सके. नकली दांत की बत्ती आमां को और बेढ़ब बना देती थी. बकौल आमा मुंह का स्वाद बदल जाने वाला ठहरा.
आमां सुबह पांच बजे उठतीं. नित्यकर्म से निवृत होकर आधा लोटा चाह सूत कर अखबार बांचने की कोशिश करती. अखबार में भी फिल्मों वाला पन्ना आमां का प्रिय होता था. अजय देवगन पर बुरी तरह फिदा आमां उसके सीने पर बने भगवान शिव के टैटू को देखकर उसे शंकर जी का अवतार बताने तक में न चूकतीं. अब आमां को क्या पता था कि लाला बाजार में खंपा की दुकान के नीचे दो बित्ते के शंकर जी दो सौ रूपये में बन जाते हैं.
गोपाल बाबू गोस्वामी के जोड़ों की दीवानी आमां दिन भर जोड़ गुनगुनाती रहती. कभी इस काॅटेज के सामने तो कभी उस काॅटेज के सामने.दिन भर करमचंद जासूस की बूढी किट्टी ताकाझांकी करती रहती.
जिंदगी का अल्मोड़िया स्वरूप देखना हो तो यहां के नक्शेबाज चायखानों में चलिए
सबका खयाल रखने वाली आमां सबको हर दम बिना मांगे सलाह देने को हर पल तैयार मिलती. एकदम नैचुरल सलाह. पूर्ण अनुभव पर आधारित. कभी आयुर्वेद, कभी ज्योतिष, कभी डाॅक्टर, कभी मसाण पूजा तो कभी टोना टोटका और कभी जब कुछ न सूझा तो निरूपा राय से लेकर ललिता पवार तक का कोई डायलाॅग अंदर ही अंदर उनसे माफी मांग कर चिपका दिया. कुल मिलाकर हर व्यक्ति की हर समस्या का इलाज आमां के पास हर टाइम उपलब्ध रहता.
दोपहर के खाने के समय आकाशवाणी अल्मोड़ा केन्द्र के कार्यक्रम बिला नागा सुनने वाली आंमां जब देश और विदेश की राजनीति का कुमाऊनी तजुर्मा करतीं तो देखने-सुनने वालों को उंगली दांतो तले दबाने के कोई और विकल्प न मिलता. आमां की बोली ठेठ कुमाऊनी होती जिसे हम जैसों के लिये समझ पाना लगभग नामुमकिन होता. समझ में न आने का कारण, ठोस क्लासिकी कुमाऊनी से अधिक आमां के दांतो का न होना होता. कई बार बोलते वक्त हवा निकल जाती और शब्द एक दूसरे के ऊपर औंधे मुंह गिर पड़ते, जिससे एक अजीब गजबजाट (समझ में न आने वाली स्थिति) उत्पन्न होती.
आमां पूरे मुहल्ले की सीसीटीवी कैमरे का काम करतीं. कौन कब आया, कौन कब गया, किसने किससे बात की, किसने किससे क्यों बात की, किसने किससे क्यों बात नहीं की से लेकर उससे वह बात की जो नहीं कहनी थी तक सब पता रखने वाली आमां के पास हर पारिवारिक समस्या का समाधान रहता. मेरी वैवाहिक स्थिति पता चलने पर जोर से ताली देकर हंसने वाली आमां से पता चला कि उन्होने पथरिया मनान में कहीं मेरे लिये लड़की की खोज करली थी.
आमां पूरे मुहल्ले की मां भी थीं और बच्चा भी. बच्चों के साथ उनसे छोटा बच्चा और बड़ों के साथ उनसे बड़ा बच्चा कोई न होता. जिंदगी की समस्यायों को कभी सीरियसली न लेने वाली आमां अगले जन्म में दो काम करना चाहती थीं-सोनाक्षी सिन्हा बन कर मोटरसाइकिल पर बैठना और अपनी इकलौती लड़की के बाबू से एक बार, बस एक बार जोर से कहना – “खामोश!”
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विवेक सौनकिया युवा लेखक हैं, सरकारी नौकरी करते हैं और फिलहाल कुमाऊँ के बागेश्वर नगर में तैनात हैं. विवेक इसके पहले अल्मोड़ा में थे. अल्मोड़ा शहर और उसकी अल्मोड़िया चाल का ऐसा महात्म्य बताया गया है कि वहां जाने वाले हर दिल-दिमाग वाले इंसान पर उसकी रगड़ के निशान पड़ना लाजिमी है. विवेक पर पड़े ये निशान रगड़ से कुछ ज़्यादा गिने जाने चाहिए क्योंकि अल्मोड़ा में कुछ ही माह रहकर वे तकरीबन अल्मोड़िया हो गए हैं. वे अपने अल्मोड़ा-मेमोयर्स लिख रहे हैं
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