अल्मोड़ा की रामलीला की ही तरह यहाँ का दशहरा भी विख्यात है. महीनों महीनों लग कर यहाँ के बड़े-बूढ़े और नौजवान-बच्चे मिल कर तमाम मोहल्लों में अलग-अलग पुतले निर्मित करते हैं जिन्हें दशहरे के दिन जुलूस की शक्ल में सारे नगर में घुमाया जाता है. अल्मोड़ा का दशहरा वाक़ई एक पूरा ऑडियो-विज़ुअल तमाशा होता है.
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इस पुतलों की कला और इन्हें बनाए जाने की तकनीकी बारीकियों पर आज से करीब 15 वर्ष पहले बाकायदा एक डॉक्यूमेंट्री भी बनी थी – द बर्निंग पपेट्स.
‘द बर्निंग पपेट्स’ को बम्बई के एक फ़िल्मकार आशु सोलंकी ने बनाया है. इस फिल्म में अल्मोड़ा में रहने वाले राजेन्द्र बोरा, जो अब संन्यास लेकर बाबा त्रिभुवन गिरि बन चुके हैं, के लम्बे इंटरव्यू हैं. ध्यान रहे कि त्रिभुवन गिरि जी अपने जीवन भर पुतला-निर्माण की परम्परा से जुड़े रहे हैं.
इस वर्ष के दशहरे पर आप कुछ ही दिन पहले जयमित्र सिंह बिष्ट का फोटो निबंध देख चुके हैं. आज देखिये इन्हीं पुतलों पर केन्द्रित युवा अभिनेता-फोटोग्राफर नीरज सिंह पांगती का एक फोटो निबंध.
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एंकरिंग, कविता, फोटोग्राफी और थिएटर का शौक रखने वाले नीरज सिंह पाँगती अल्मोड़ा के रहने वाले हैं. वर्तमान में पी.जी. कॉलेज बागेश्वर में अंग्रेज़ी के अस्थाई प्रवक्ता हैं.
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