Featured

108 एम्बुलेंस सेवा के 700 से अधिक कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त

उत्तराखंड में 108 एम्बुलेंस सेवा के 700 से अधिक कर्मचारियों की सेवाओं समाप्त कर दी गयी हैं. कारण यह कि 108 सेवा का ठेका एक नयी कंपनी को मिल गया है. 108 सेवा शुरू हुई थी तो इसको संचालित करने का ठेका सत्यम कंपनी को मिला था. सत्यम के मालिक रामलिंगम राजू जब घपले में जेल भेज दिये गए तो इस सेवा के संचालन का जिम्मा जी.वी.के कंपनी को सौंप दिया गया. अब यह ठेका मध्यप्रदेश की एक कंपनी को दे दिया गया है. ठेका मिलने के पीछे कंपनी की योग्यता से अधिक राजनीतिक कनैक्शन के योगदान की चर्चा, ठेका मिलते ही शुरू हो गयी.

पिछले दस दिनों से 108 एम्बुलेंस सेवा के कर्मचारी देहारादून के परेड ग्राउंड में धरने पर बैठे हैं. 8 मई से, इन्होंने क्रमिक अनशन भी शुरू कर दिया है. लेकिन राज्य की भाजपा सरकार इनके आंदोलन की एकदम अनदेखी किए हुए है. दिल्ली के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने कहा कि उनकी सरकार ने आमजन की समस्याओं के निवारण के लिए ईमानदार पहल की है. लेकिन अपने राज्यों में धरने पर बैठे हुए 108 एम्बुलेंस सेवा कर्मियों की समस्याओं के समाधान के प्रति तो उनकी तरफ से कोई ईमानदार पहल नहीं दिखती.

108 सेवा एक आपातकालीन सेवा के तौर पर काम करती रही है. घायलों को अस्पताल पहुंचाने का काम इस सेवा के लोगों ने बड़ी शिद्दत से किया है. यह विडम्बना है कि राज्य में आपातकालीन सेवा संचालित करने वाले कर्मचारियों का खुद का भविष्य आपातकालीन स्थिति में आ गया है!

राज्य में आपातकालीन सेवाओं को संचालित करने वाले ये कर्मचारी,कंपनी के अनुबंध पर काम करते रहे हैं. इनकी मांग कुल जमा इतनी ही है कि इनको पहले की भांति सेवा में लिया जाये. सरकारों ने बेरोजगारी का ऐसा पहाड़ खड़ा कर दिया है कि योग्यता के अनुसार स्थायी एवं नियमित रोजगार की बात तो छोड़ दीजिये,संविदा की नौकरी बचाए रखने के लिए तक आंदोलन करना पड़ रहा है. देखिये ना संविदा की नौकरी बची रहे इसके लिए भीख मांगने और खून से चिट्ठी लिखने से लेकर धरना और क्रमिक अनशन तक क्या नहीं कर रहे 108 एम्बुलेंस सेवा के कर्मचारी! उत्तराखंड में 56 हजार के करीब सरकारी पद खाली हैं. लेकिन सरकार के विकास के तमाम दावों के बीच यह क्रूर तस्वीर है कि बेरोजगार नौजवान तो स्थायी नौकरी मांगने का तक साहस नहीं कर पा रहे हैं. सारी जद्दोजहद,संघर्ष इतने पर टिक गया है कि ठेके की ही नौकरी हो,पर तो सही,बची तो रहे यही!

(इन्द्रेश मैखुरी की फेसबुक वॉल से)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

2 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

2 weeks ago

भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़

उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…

3 weeks ago

यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले

देवेन्द्र मेवाड़ी साहित्य की दुनिया में मेरा पहला प्यार था. दुर्भाग्य से हममें से कोई…

3 weeks ago

कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता

किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…

3 weeks ago

खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार

गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…

3 weeks ago